धरती पर आज संकट आयी है,
मानबता की हत्या आज चरम पर है,
आज मानबता की उलंघन चरम सीमा पर है,
ऐसे मे कौन आएगा इस धरती को बचाने के लिए।
एक सुबह में धरती को देखूं,
खुली आँखो से आसमान को देखूं,
चारों और छाई है शांति,
इंसान के अंदर इतना क्यों है अशांति?
अशांत इस दुनिया आज क्यों जल रहा है?
वह कौन सा आग है और कहां से आ रहा है,
हर कोई इस आग मे लिपटे हुए है,
और इस आगको शांत करेगा कौन?
सुंदर इस धरती को बचाएगा कौन?
लड़ता लड़ता लड़ाई आज सब करे जा रहे हैं,
उद्देश्यहीन जीवन के लिए हर कोई मारे जा रहे हैं,
जिंदगी जीने का उद्देश्य को हर कोई भूले जा रहे हैं
लड़ता लड़ता हर कोई आज खोये जा रहे हैं।
जीवन का उद्देश्य को हर कोई आज भूले जा रहे हैं,
और इस जीबन की उद्देश्य को आज बताएगा कौन?
सुन्दर धरती आज बड़े संकट मे,
सुंदर इस धरती को आज बचाएगा कौन?
आगकी यलगार धधक रही है,
बारूद की धुंया धधक रही है,
स्वास की क्या कीमत है?
कतारो मे इंसान मारे जा रहे हैं।
आसमान से बरसते मौत को देखा,
धरती को आज मैं मौत का कुआं देखा,
बार-बार मन में सवाल आ रहा है,
इस सुंदर धरती को आज बचाएगा कौन?
मतभेद ने आज दायरा बनाई है,
मतभेद ने आज मनभेद बनाई है,
लोगों ने आज समझ नहीं पा रहा है,
बिभेद ने आज कितना दूरियां बड़ाई है,
संघर्ष की दौर में किसको मैं समझाऊं,
सबको मैं यहां उलझा पाया, मानवता की बात कौन सुने?
मानवता ही सबसे बड़ा धर्म यह कोई समझ ना पाया,
सुंदर धरती आज बड़े संकट में, इस धरती को बचाएगा कौन?
चारो ओर लगी है आग,
सुन्दर धरती जलकर हो रही है खाक,
मानब कर रहे हाहाकार और करें बबाल,
शांति का सन्देश कौन देगा, और कौन उठायगा मशाल?
युद्ध का बिगुल बज चुकी है, रणभूमि आज सज चुकी है,
रणबांकुरो ने हुंकार भरी है, इंसान से इंसान लड़ रहे है।
सम्बेदना मर रही है, मानबता बिलुप्त हो रहे है,
इस मानबता को बचाने के लिए आगे आएगा कौन?
सुन्दर धरती आज बड़े संकट मे, इस धरती को बचाएगा कौन?
चीख पुकार आज गूंज रही है, दयालुता खो रहे है,
शुभ बुद्धि सम्पन्न लोग खड़े है, जुवान उनके सिले हुए है,
तमाशा हर कोई देख रहे है, कोई नही कह रहे है,
धरती मे आज आपदा आयी है, इस आपदा से बचाएगा कौन?
चारों ओर कोहराम मचा है, जल, थल, आकाश गूंज उठा है,
हर कोई कह रहे है त्राहिमाम त्राहिमाम,
शिशुओं की किलकारिया आर्तोनाद मे बदल गये,
खुली हवाओ मे स्वास लेना भी कीमती हो गये,
कोमल हृदय यह पूछेगा, सुंदर इस को धरती बचाएगा कौन?
रित, हित हर कोई देख रहे हैं, स्वार्थी आज सब बने हैं,
स्वार्थ में आज सब घुसे जा रहे हैं,
मानवता को हर कोई भूल रहे है,
कोई तो आओ मानवता को बचाने मे,
मानवता सबसे बड़ा धर्म है, मानवता को भूलो मत,
मानवता जीवन की आधार है, मानवता से दूर भागो मत,
मानवता मानव मन में कौन-कौन में बसा है,
मानवता को जगाना है और ईश्वर की न्याय मानवता से ही आता है।
मानव बनकर आए हो मानवता को मत भूलो तुम,
मानवता ही जीवन है मानवता को अपनाओ तुम,
संसार उनके ऋणी रहे है, जिन्होंने मानवता को अपनाया है,
संसार उनको महान कहा है, जिन्होंने मानवता को अपना धर्म बनाया है।
1. धरती पर संकट और मानवता का उल्लंघन:-
कविता का प्रारंभ धरती पर व्याप्त संकट से होता है, जहाँ मानवता की हत्या चरम पर पहुँच चुकी है। कवि चित्रित करता है कि कैसे हिंसा, अन्याय और नैतिक पतन ने धरती को संकट में डाल दिया है। "मानवता की उल्लंघन चरम सीमा पर है" यह पंक्ति आधुनिक विश्व की क्रूरता को उजागर करती है, जहाँ युद्ध, आतंकवाद और सामाजिक विभेद ने शांति को निगल लिया है। कवि का प्रश्न "ऐसे में कौन आएगा इस धरती को बचाने के लिए?" पाठक को जिम्मेदारी की याद दिलाता है। यह बिंदु मानव की स्वयं की रचना को नष्ट करने की विडंबना दर्शाता है, जहाँ विकास की आड़ में विनाश हो रहा है। कवि की भावुकता पाठक के हृदय को छूती है, संकट की गहराई को महसूस कराती है। यह न केवल पर्यावरणीय संकट, बल्कि नैतिक संकट का भी प्रतीक है, जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि मानवता का सच्चा अर्थ क्या है।
कविता का प्रारंभ धरती पर व्याप्त संकट से होता है, जहाँ मानवता की हत्या चरम पर पहुँच चुकी है। कवि चित्रित करता है कि कैसे हिंसा, अन्याय और नैतिक पतन ने धरती को संकट में डाल दिया है। "मानवता की उल्लंघन चरम सीमा पर है" यह पंक्ति आधुनिक विश्व की क्रूरता को उजागर करती है, जहाँ युद्ध, आतंकवाद और सामाजिक विभेद ने शांति को निगल लिया है। कवि का प्रश्न "ऐसे में कौन आएगा इस धरती को बचाने के लिए?" पाठक को जिम्मेदारी की याद दिलाता है। यह बिंदु मानव की स्वयं की रचना को नष्ट करने की विडंबना दर्शाता है, जहाँ विकास की आड़ में विनाश हो रहा है। कवि की भावुकता पाठक के हृदय को छूती है, संकट की गहराई को महसूस कराती है। यह न केवल पर्यावरणीय संकट, बल्कि नैतिक संकट का भी प्रतीक है, जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि मानवता का सच्चा अर्थ क्या है।
2. शांत सुबह की कल्पना और आंतरिक अशांति:-
कवि एक आदर्श सुबह की कल्पना करता है, जहाँ खुली आँखों से धरती और आसमान को देखा जाए, चारों ओर शांति छाई हो। लेकिन तत्काल विपरीत चित्र उभरता है—इंसान के अंदर इतनी अशांति क्यों? यह बिंदु मानव मन की आंतरिक उथल-पुथल को रेखांकित करता है, जो बाहरी शांति के बावजूद अस्तित्व में है। लालच, ईर्ष्या और भय ने मन को जलाया है, जिससे दुनिया अशांत हो रही है। कवि पूछता है कि यह अशांति कहाँ से उपजी, जो शांति की दीवार तोड़ रही है। यह आंतरिक संघर्ष वैश्विक अशांति का मूल कारण है, जो व्यक्तिगत स्तर से सामूहिक स्तर तक फैल गया है। कविता की यह कल्पना आशा जगाती है, लेकिन वास्तविकता की कड़वाहट भी दिखाती है। पाठक को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती है कि शांति बाहर नहीं, अंदर से आती है।
3. हिंसा की आग और उद्देश्यहीन जीवन:-
कविता में "आग" हिंसा, क्रोध और विनाश का प्रतीक है, जो दुनिया को जला रही है। कवि पूछता है कि यह आग कहाँ से आ रही, क्यों हर कोई इसमें लिपट रहा है, और इसे शांत कौन करेगा? यह बिंदु युद्धों और संघर्षों की निरर्थकता को उजागर करता है, जहाँ "लड़ता-लड़ता" सब खोते जा रहे हैं। उद्देश्यहीन जीवन का वर्णन दुखद है—जिंदगी जीने का मकसद भूलकर लोग मर रहे हैं। कवि की यह चेतावनी आधुनिक समाज की दौड़-भाग को आईना दिखाती है, जहाँ भौतिक सुख के पीछे आध्यात्मिक खालीपन छिपा है। हर कोई आग में जल रहा, लेकिन शांत करने वाला कोई नहीं। यह प्रश्न सामूहिक जागृति की मांग करता है, कि सुंदर धरती को बचाने का दायित्व हमारा है। कविता की यह गहराई पाठक को जीवन के सच्चे उद्देश्य पर विचार करने को बाध्य करती है।
4. युद्ध की विभीषिका और मतभेदों का जाल:-
युद्ध की भयावहता कविता का केंद्रीय चित्र है—"आग की चलगार", "बारूद की धुंआ", "आसमान से बरसते मौत"। कवि धरती को "मौत का कुआं" कहता है, जहाँ कतारों में इंसान मर रहे हैं। यह बिंदु मतभेदों के कारण उत्पन्न विभेद को दर्शाता है, जो मनभेद और दूरियाँ पैदा कर रहा है। धार्मिक, जातीय या वैचारिक मतभेद ने शांति को कुचल दिया है। "रणभूमि सज चुकी है, इंसान से इंसान लड़ रहे" यह विडंबना मानवता के पतन को दिखाती है। कवि की चीखें—स्वास की कीमत, शिशुओं की किलकारियाँ आर्तनाद में बदलना—हृदय विदारक हैं। यह युद्ध न केवल शारीरिक, बल्कि भावनात्मक विनाश है। पाठक को एहसास होता है कि मतभेदों का जाल तोड़ना ही धरती को बचा सकता है। कविता वैश्विक संघर्षों की सच्चाई को उकेरती है।
5. संघर्ष के दौर में मानवता की अनदेखी:-
संघर्ष के दौर में कवि असहायता व्यक्त करता है—"किसको मैं समझाऊं, सब उलझे पाए"। यह बिंदु मानवता की अनदेखी पर प्रहार करता है, जहाँ "मानवता ही सबसे बड़ा धर्म" कोई समझ न पाया। चारों ओर आग लगी है, धरती खाक हो रही, हाहाकार मचा है, लेकिन शांति का संदेश कौन देगा? "मशाल" उठाने वाला कोई नहीं। संवेदना मर रही, मानवता लुप्त हो रही। कवि की यह उदासी सामाजिक उदासीनता को उजागर करती है, जहाँ बुद्धिमान लोग तमाशा देख रहे। युद्ध का बिगुल बज चुका, लेकिन जागृति का कोई स्वर नहीं। यह बिंदु आह्वान है कि मानवता को प्राथमिकता दो, वरना संकट गहरा जाएगा। कविता पाठक को झकझोरती है, कि संघर्ष में भी मानवीय मूल्यों को न भूलें।
6. आपदा का कोहराम और स्वार्थ की बेड़ियाँ:-
कविता में आपदा का चित्रण भयानक है—"चारों ओर कोहराम, जल-थल-आकाश गूंज उठा"। "त्राहिमाम" की पुकारें, शिशुओं की किलकारियाँ आर्तनाद, खुली हवा में सांस लेना कीमती—यह पर्यावरणीय और मानवीय तबाही दर्शाता है। यह बिंदु स्वार्थ की आलोचना करता है, जहाँ "रित-हित" भूलकर सब स्वार्थी बने हैं। दयालुता खो रही, युवा सजे हुए खड़े हैं, लेकिन कोई बोल नहीं रहा। कवि पूछता है कि इस आपदा से कौन बचाएगा? स्वार्थ ने मानवता को भुला दिया, जो जीवन का आधार है। यह वैश्विक संकट—जलवायु परिवर्तन, युद्ध—की याद दिलाता है। पाठक को चेतावनी कि स्वार्थ की बेड़ियाँ तोड़ो, अन्यथा धरती नष्ट हो जाएगी। कविता की यह तीव्रता जागृति का माध्यम बनती है।
7. मानवता का महिमामंडन और आह्वान:-
कविता का समापन मानवता के गुणगान से होता है—"मानवता सबसे बड़ा धर्म है, जीवन का आधार"। कवि कहता है कि ईश्वर का न्याय भी मानवता से आता है। यह बिंदु आह्वान है—मानव बनकर मानवता न भूलो, इसे अपनाओ। संसार उनको महान कहता है जिन्होंने मानवता को धर्म बनाया। "मानवता को जगाना है" यह सकारात्मक संदेश है, जो संकट के बीच आशा जगाता है। कवि व्यक्तिगत जिम्मेदारी सौंपता है कि हम ही उद्धारकर्ता हैं। यह दार्शनिक ऊँचाई कविता को अमर बनाती है, सभी धर्मों से ऊपर मानवता को स्थापित करती है। पाठक को प्रेरणा मिलती है कि छोटे-छोटे कार्यों से धरती बचेगी। मानवता अपनाने से ही शांति लौटेगी।
निष्कर्ष:-
यह कविता मानवता के संकट पर एक करुणाजनक चीख है, जो धरती के विनाश, युद्ध की विभीषिका और स्वार्थ की जकड़न को उजागर करती है। कवि के बार-बार उठते प्रश्न—"इस धरती को बचाएगा कौन?"—पाठक को आत्मचिंतन के लिए बाध्य करते हैं। मुख्य बिंदुओं से स्पष्ट है कि समस्या आंतरिक अशांति और मतभेदों से उपजी है, लेकिन समाधान मानवता में निहित है। कविता आधुनिक विश्व की सच्चाई को आईना दिखाती है, जहाँ पर्यावरणीय आपदा और नैतिक पतन साथ-साथ चल रहे हैं। अंततः, यह आह्वान है कि हम सब मिलकर मानवता का धर्म अपनाएँ, शांति की मशाल जलाएँ। यदि हम जागे, तो सुंदर धरती बचेगी; वरना विनाश निश्चित है। कविता न केवल चेतावनी, बल्कि आशा का संदेश है—मानवता ही हमारा सच्चा उद्धार है।
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