बीबिधता से भरा इस दुनिया मे इस लड़ाई का अंत कब होगा?
नासमझी और नासहमी बेपरवाह रूप ले चूका है,
हिंसा और घृणा बिराट रूप ले चूका है,
घर की कोने से लेकर बिश्व की आख़री कोने तक,
सबकी मन मे प्रतिहिंसा की भाबना बढ़ती जा रहे है।
नासमझी और नासहमी बेपरवाह रूप ले चूका है,
हिंसा और घृणा बिराट रूप ले चूका है,
घर की कोने से लेकर बिश्व की आख़री कोने तक,
सबकी मन मे प्रतिहिंसा की भाबना बढ़ती जा रहे है।
असुरखा की भाबना बढ़ती जा रहे है,
लोग एक दूसरे को हराकर बाजी जितना चाहते है,
इसीलिए हर कोई लड़ रहा है,
आखिर इस लड़ाई का अंत कब?
युद्ध बिद्धस्त इस दुनिया मे शांति की आश कम हो रहे है,
लोगो मे जीने की आशा कठिन होते जा रहे है,
जीबन की बुनियाद नस्ट होते जा रहे है,
सद्बुद्धि और सद्भावना कम होते जा रहे है।
कोई तो लगे है इस सुन्दर धरा को नुकसान पहुंचाने मे,
कोई तो लगे है इस दुनिया को अपना गुलाम बनाने मे,
आखिर लोगो की बिचारो मे इतनी मलीनता क्यू आई,
और आखिर इस लड़ाई का कब अंत होगा।
बिबिधता इस दुनिया की सुंदरता है,
कोई तो, इस सुंदरता को नस्ट करना चाहते है,
कोई तो लगे है बताबारण प्रदूषित करने मे,
कोई तो लगे दूषित बिचारो को थोपने मे,
आखिर समाज तथा देश मे इतनी संघर्ष क्यू हो रहा है।
जरुरी नहीं है की कोई लड़ाई नेक नीति पर किया जाए,
हर कोई अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए लड़ रहा है,
आखिर ये लड़ाई क्यू चल रहा है और इस लड़ाई का अंत कब?
आधुनिकता ने समाज को एक कोने से दूसरे कोने तक जोड़ लिए है,
दुनिया आज ग्लोबल विलेज बन चुके है,
बिचारो के परिधि बढ़ चुके है, बिकास की दायरा चाँद छुए है।
लोगो की मानसिकता मे बहुत बड़ा परिबर्तन आया है,
लोग एक दूसरे के ऊपर हाबी होना चाहते है,
जीत हासिल करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लड़ाई जारी है।
पारस्परिक बिस्वास की जगह नफरत की खाई बड़ते जा रहे है,
लोग आपसी मित्रता को गहराई से निभाना नहीं चाहते है।
बुद्धियों का दुरुपयोग बढ़ती ही जा रहे हैं।
बुद्धियों का प्रयोग करके नए-नए तरीका अपनाए जा रहे हैं,
लोगों को गुलाम बनाने में और बश करने में,
संसार आज बड़े संकट मे और आसुरीक शक्ति की प्रभाब मे।
समाज आज बाट चुकी है,
बिभिन्न बिचारधारा का भीड़ लग चुकी है,
कौन सही कौन गलत निर्णय बाकि है,
हर बिचारधारा अपने आपको सही कहते है,
बिश्व आज बाट चुकी है, भाषा के आधार पर,
धर्म के आधार पर, जाति के आधार पर,
खेत्र के आधार पर, मजहब के नाम पर,
अथवा कोई पार्टी बनाकर लड़ रहे है,
आखिर हर कोई बाटे हुए क्यू लड़ रहा है,
और इस लड़ाई का अंत कब होगा।
पड़ोसी पड़ोसी के बिच लड़ाई जारी है,
पड़ोसी पड़ोसी मे जलन जारी है,
गाँव से लेकर शहर की गली,
मोहल्ले तक हर कोई लड़ रहा है।
कोई तो आधीपत्य बनाना चाहते है,
कोई खेल खेलना चाहते है,
शांति की चाहत रखनेवालो मे अजीब खेल तमाशा है,
और शतरंज की चाल चालनेवाला यहाँ कई मौजूद है।
देखा हु मजबूरिया और मजबूर लोगो को,
उनके तकदीर मे क्या था और शान शौकत उनसे दूर है,
आखिर दो पाटन के बिच मे पीसना उन्ही को है,
और जीबन युद्ध की ये लड़ाई का अंत कब होगा।
आखिर लोग बने क्यू रहना चाहते है, जो जैसा है बैसा,
और लोग क्यू नहीं जानना चाहते है सच्चाई को,
एक दूसरे को जीना पीसना कब तक जारी रहगा,
कबतक मन की अंधेरा को भगाकर उजाला की तरफ जायगा?
मानब मन मे अंधेरा छाई है, अहंकार की खाई भरी है,
इतना असुरखा क्यू बड़ा है, यहाँ नफरत की दिवार खड़ा है,
यहाँ कौन किसे पछाड़ रहे है, आगे निकलने की होड़ मची है,
कहा, अनकहा लड़ाई बड़ा है, इस लड़ाई का अंत कब होगा।
बिचारों मे लोग जकड़े हुए है, चाहे वह बिचार सत्य हो या असत्य,
बिचारों ने दुनिया को कैद कर रखा है, चाहे वह बिचार सही या गलत,
हर यहाँ बिचार थोपे जा रहा है, और वह बिचार अपना परिधि बनाए हैं,
और इस परिधि मे फसकर बहुत सारे भोले लोग लड़ रहे है,
वह लड़ाई सच या झूठ कौन तय करेगा, और इस लड़ाई का अंत कब होगा।
वह खौफनाक मंजर कब रुकेगा,जहाँ मानबता की कोई जगह नहीं,
इस उन्मादी भीड़ के मानबता भीख मांग रही है,
इस सड़ा हुआ बिचार के आगे मानबता की दम घुट रही है,
चारो तरफ चीख पुकार, कौन वह आगे आएगा मानबता को बचाने के लिए,
आखिर इस सड़ा हुआ बिचार का आतंक कब तक जारी रहेगा।
मानबता के ऊपर आज भीषण संकट आयी है, मानबता आज हारते ही जा रहे है,
कुछ गंदे मानसिकता वाले आज दुनिया को रौदना चाहते है, जरुरत है नयी रूपसे सोचने की,
जरुरत है नयी बिबेक के साथ मानबता को बचाने की,
जरुरत है सभी गंदे बिचारों को हराकर एक नये युग की शुरुआत की,
आज जरुरत है सभी शुभ बुद्धि सम्पन्न लोगो को एक होकर लड़ने की,
कारण मानबता अगर नहीं बचेगी, तो दुनिया कैसे बचेगी????
1. हिंसा और घृणा का विस्तार:-
कविता में दुनिया भर में फैली हिंसा, घृणा और प्रतिहिंसा की चिंता व्यक्त की गई है। घर से लेकर वैश्विक स्तर तक, हर जगह नफरत की भावना बढ़ रही है। लोग एक-दूसरे को हराने की होड़ में लगे हैं। यह लड़ाई न्याय के लिए नहीं, बल्कि स्वार्थ के लिए है। ऐसी स्थिति में शांति की आशा मंद पड़ती जा रही है।
निष्कर्ष: बिना सहिष्णुता के शांति असंभव है।
2. विविधता का दुरुपयोग:-
विविधता दुनिया की सुंदरता है, परंतु इसे विभाजन का साधन बना दिया गया है। धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर लोग एक-दूसरे से लड़ रहे हैं। कोई दूसरों को गुलाम बनाना चाहता है, तो कोई प्रदूषण फैला रहा है। इस विविधता को नष्ट करने के प्रयास जारी हैं।
निष्कर्ष: विविधता को सम्मान देना ही समाज की रक्षा है।
3. आधुनिकता और मानसिकता का अंतर:-
आधुनिकता ने दुनिया को ग्लोबल विलेज बना दिया है, पर मानसिकता पिछड़ी हुई है। लोग तकनीक का उपयोग नियंत्रण और शोषण के लिए कर रहे हैं। बुद्धि का दुरुपयोग बढ़ रहा है। पारस्परिक विश्वास की जगह नफरत की खाई गहरी हो रही है।
निष्कर्ष: तकनीक के साथ नैतिकता का विकास आवश्यक है।
4. विचारों की कैद और भ्रम:-
लोग अपने विचारों में इतने जकड़े हुए हैं कि सच्चाई दिखाई नहीं देती। हर विचारधारा स्वयं को सही मानती है और दूसरों को गलत ठहराती है। इससे अर्थहीन लड़ाइयाँ चल रही हैं। भोले लोग झूठे विचारों के लिए लड़ रहे हैं।
निष्कर्ष: खुले मन से सोचना ही सच्चाई तक पहुँचने का मार्ग है।
5. मानवता की रक्षा का आह्वान:-
मानवता आज संकट में है। उसकी आवाज़ दब रही है और उसे भीख मांगनी पड़ रही है। गंदे विचारों के आगे मानवीय मूल्य घुट रहे हैं। कवि सभी बुद्धिमानों से एकजुट होकर मानवता की रक्षा का आह्वान करता है।
निष्कर्ष: मानवता के बिना दुनिया का अस्तित्व अर्थहीन है।
निष्कर्ष:-
यह कविता आधुनिक युग के संकटों — हिंसा, घृणा, स्वार्थ, विभाजन और नैतिक अधोपतन — की गहन चिंता व्यक्त करती है। कवि दिखाता है कि विविधता, तकनीक और बुद्धि जैसे वरदानों का भी दुरुपयोग हो रहा है। मानवता की जड़ें कमजोर पड़ रही हैं। अंत में वह एक आह्वान देता है — सभी को सच्चाई, सहिष्णुता और सामूहिक विवेक के साथ मानवता की रक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए। क्योंकि यदि मानवता नष्ट हो गई, तो दुनिया का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
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